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Showing posts from 2014

प्राचीन पाटलिपुत्र कथा

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पटना में पटना साहिब मार्ग पर स्थित कुम्ह्रार में आप प्राचीन पाटलिपुत्र की झलक देख सकते है . वह भारतीय पुरातत्व संग्रहालय के द्वारा प्रदर्शनी हाल का निर्माण करवाया गया है , इनता ही नहीं एक पूरा ग्राउंड ही बना है . पर बेहतर रख रखाव के करा कई चीज का क्षर हो रहा है , खुदाई में मिले सामग्री के बारे में पूरी जानकारी देने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है . अगर लोगों के जानकारी लेने है न तो वह खुद से पढ़ कर समझ सकते है . प्राचीन पाटलिपुत्र के बारे में  प्राचीन साहित्य में पाटलिपुत्र के लिए पाटलिग्राम, पाटलिपुर,कुसुमपुर,पुष्पपुर एवं कुसुमध्वज इत्यादि नाम का उल्लेख किया गया है .छठी शताब्दी ई.पू. में यह एक छोटे से ग्राम के रूप में था ,जहाँ अपने निर्वाण से पूर्व भगवान बुद्ध ने एक निर्माणाधीन अवस्था में देखा था . इसका निर्माण मगध नरेश अजातशत्रु के आदेशानुसार वैशाली के लिच्छवी गणराज्य से मगध की सुरक्षा के लिए करवाया गया था .  सामरिक दृष्टिकोण से इसकी भौगोलिक स्थिति से प्रवावित से प्रभावित होकर अजातशत्रु के पुत्र के उद्यन ने 5 वीं शताब्दी ई.पू. के मध्य मगध की राजधानी राजगृह से पाटलि...

बच्चे हमारे भविष्य नहीं हमारा वर्तमान है- कुशाल सिंह

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बच्चे हमारे भविष्य नहीं हमारा वर्तमान है- कुशाल सिंह   बाल अधिकार और शिक्षकों की भूमिका कार्यशाला मैं उपस्थित अतिथि बच्चे हमारे भविष्य नहीं हमारा वर्तमान है A हमारी जनसंख्या में 40 प्रतिशत बच्चों की भागीदारी है A बाल अधिकार को समझने से पहले यह समझना होगा की बच्चे हमारे देश के नागरिक है A बाल अधिकार और शिक्षा एक दुसरे के पर्याय है और बिना बच्चों को शिक्षित किये हम उनको उनका अधिकार नहीं दिलवा सकते हैं A यह कहना है राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष सुश्री कुशाल सिंह का A पटना के होटल पाटलिपुत्र अशोका में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग , बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग और यूनिसेफ के द्वारा बाल अधिकार और शिक्षकों की भूमिका विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन पर   राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष सुश्री कुशाल सिंह ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा A   राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष, कुशाल सिंह संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा की UNCRC बाल अधिकार की बायबल है A पहली बार सं...

सिद्धि पीठ से कम नहीं है माजरा स्थित कामख्या स्थान

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सिद्धि पीठ से कम नहीं है   माजरा स्थित कामख्या स्थान माँ कामख्या का पिंड पूर्णिया जिले के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है के नगर प्रखंड के मजरा गावं स्थित कामख्या स्थान   किसी सकती पीठ से कम नहीं है । पूर्णिया – धमदाहा मार्ग पर काझा कोठी से 9 किलोमीटर दक्षिण स्थित इस   मंदिर का इतिहास लगभग 800 सौ साल पुराना है । इस स्थान को कामरूप कामख्या के समक्ष सिद्धि पीठ के रूप माना जाता है । कामख्या स्थान में सालो भर माता के दरबार में कोई मनौती   मांगने आता है तो कोई मनोकामना पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाने श्रधालुओं का ताँता लगा रहता है । माघ मास के बसंत पंचमी के बाद आने वाले पहले रविवार को लगने वाले मेला इस मंदिर को मंदिर का नजारा खास बना देता है । यह   दिन   जिनकी मनौती पूरी हो चुकी होती और जिनको मनुती मांगनी है उनके लिए खास होता है । इस दिन माता के दर्शन के लिए भक्तों का ताँता लगा रहता है । मंदिर परिसर में माता कामख्या के साथ – साथ श्यामा – सुन्दरी और मानिक फौजदार का भी मंदिर है ।श्रद्धालु माता के साथ –साथ श्यामा- सुन्दरी   और देवी के श...