दो राहे पर कोसी में किसानी
दो राहे पर कोसी के किसानी गेहूं की सूनी बालियाँ किसानी का उतना अनुभव तो नहीं है , पर बचपन खेती- देखते गुजरा था। दिल्ली- भोपाल – झारखण्ड होकर एक बार फिर से गावं में बसने के बाद एक बार फिर से माटी से जुड़ाव बढ़ने लगा । पिछले दो - तीन साल गावं में गुजारने के बाद खेती – किसानी को एक बार फिर से समझने और जानने की कोशिश करने लगा। गावं में नयी पारी के पहले साल २०१३ में विनाशकारी फेलिन के बाद से कोसी इलाके के खेती का आलम बदल सा गया। फेलिन के कारन पुरे कोसी इलाके में हजारों एकड़ की धान की फसल बर्बाद हो चुकी थी, लोगों को समझ में नहीं आ रहा था की आगे क्या होगा , कैसे आगे गाड़ी चलेगी। अनुभवी किसानों के खेती को जुआ बता कर एक दाँव लगाने की सलाह दी , और दावं खेल भी लिया। हर दावं बेकार धान में मिली नाकामी के बाद मक्के की खेती में जुट गया।मक्के की फसल खेत में देख कर किसान को दिलासा मिला था की धान न सही मक्के से राहत मिलेगी। मक्के की फसल के समय बेमौसम बारिश और बिचौलियों ने मुनाफे वाली खेती के अरमान पर पानी से फेर दिया।आलम यह था की मुनाफा तो दूर लागत भी नहीं निकल पाया। जैसे- ...