Posts

Showing posts from February 16, 2014

सिद्धि पीठ से कम नहीं है माजरा स्थित कामख्या स्थान

Image
सिद्धि पीठ से कम नहीं है   माजरा स्थित कामख्या स्थान माँ कामख्या का पिंड पूर्णिया जिले के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है के नगर प्रखंड के मजरा गावं स्थित कामख्या स्थान   किसी सकती पीठ से कम नहीं है । पूर्णिया – धमदाहा मार्ग पर काझा कोठी से 9 किलोमीटर दक्षिण स्थित इस   मंदिर का इतिहास लगभग 800 सौ साल पुराना है । इस स्थान को कामरूप कामख्या के समक्ष सिद्धि पीठ के रूप माना जाता है । कामख्या स्थान में सालो भर माता के दरबार में कोई मनौती   मांगने आता है तो कोई मनोकामना पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाने श्रधालुओं का ताँता लगा रहता है । माघ मास के बसंत पंचमी के बाद आने वाले पहले रविवार को लगने वाले मेला इस मंदिर को मंदिर का नजारा खास बना देता है । यह   दिन   जिनकी मनौती पूरी हो चुकी होती और जिनको मनुती मांगनी है उनके लिए खास होता है । इस दिन माता के दर्शन के लिए भक्तों का ताँता लगा रहता है । मंदिर परिसर में माता कामख्या के साथ – साथ श्यामा – सुन्दरी और मानिक फौजदार का भी मंदिर है ।श्रद्धालु माता के साथ –साथ श्यामा- सुन्दरी   और देवी के श...

शहीदों की कहानी स्मारक की जुबानी

Image
धमदाहा शहीद स्मारक शहीदों की कहानी स्मारक की जुबानी मैं धमदाहा का शहीद   स्मारक , आजादी के दीवानों की कहानी आज भी मुझमें आसानी से देख और सुन सकते है। चलिए मेरे साथ सन् 42 , जब   पुरे दे श में अहसयोग आंदोलन पूरे चरम पर था , लोग अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा रहे थे उस   समय आंदोलन का प्रभाव पूर्णियां जिले के धमदाहा और आसपास के क्षेत्रो में भी था। धमदाहा में भी 25 अगस्त 1942 चारों तरफ अंग्रेजों भारत छोड़ो नारे की गूंज थी । लोग तिरंगा फहराने और   थाने को जलाने के लिए   आगे बढ़ रहे थे तभी अचानक ब्रितानी पुलिस ने क्रांतिकारियों को रोकने के लिए फायरिंग का सहारा लिया , पुलिस फायरिंग में 14 लोग श हीद हुए और न जाने कितने लोग घायल। उनकी श हादत को याद करते हुए आज भी मेरे सामने वह सारे दृष्य सामने आ जाता है। दे श के लिए उन श हीदों के बलिदान को देख कर आज भी मेरा सीना गर्व से तना दिखता है , लेकिन रहनुमाओं की बेरुखी के कारण आज भी कई श हीदों के परिजन बदहाली और गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर है। अगर समय रहते उन श हीदों के परिजनों की सुध न ली गई तो...