जयनगरा वाली लाल नुआ पहने पहली बार अपने ससुराल पहुंची थी जयनगरा वाली,वह भी महज 12 साल की उम्र में। गर्दन तक लंबा घूंघट ।रंग थोड़ा सांवला ।हां कद काठी में हमउम्र की लड़कियों में थोड़ी ज्यादा मजबूत। बदन भी गठीला था। दरवाजे पर पहुंचते ही साड़ी के नीचे से जोड़ी भर आंखे चोरी छिपे घर का मुआयना कर रही थी। घर क्या कहें दो छोटी-छोटी झोपडी ।बूढ़ी सास जिसे कम ही दिखाई देता था।ससुर कामत पर ही रहा करते थे। पति थोड़ा कड़क मिजाज वाला था। जिस कारण से मरर टोला में अलग पहचान थी। काम करने में भी माहिर कोई भी काम हो कभी ना नहीं करता था।ससुराल पहुंचने के बाद अवाक रह गई थी जयनगरा वाली। बाल सुलभ मन यह मानने को तैयार ही नहीं था कि अब उसे इसी जगह अपनी बांकी जिंदगी गुजार देनी है। बोलती कुछ नहीं थी। बस टुकुर टुकर निहारे जा रही थी। बगल खड़ी ननद ने जब चिकोटी काटा तब जाकर चेतना लौटी की वह ससुराल में खड़ी है और आसपास की महिलाएं खड़ी है। आस-पास की महिलाएं उसे घर में बिठा कर धीरे -धीरे वापस लौटने लगी थी। सास दो छत्ती के नीचे बैठी थी और ससुर वापस मालिक के कामत पर जाने की तैयारी में जुटे थे। जाने कब जयनगरा वाली के आंखों में नींद...
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दो राहे पर कोसी में किसानी
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दो राहे पर कोसी के किसानी गेहूं की सूनी बालियाँ किसानी का उतना अनुभव तो नहीं है , पर बचपन खेती- देखते गुजरा था। दिल्ली- भोपाल – झारखण्ड होकर एक बार फिर से गावं में बसने के बाद एक बार फिर से माटी से जुड़ाव बढ़ने लगा । पिछले दो - तीन साल गावं में गुजारने के बाद खेती – किसानी को एक बार फिर से समझने और जानने की कोशिश करने लगा। गावं में नयी पारी के पहले साल २०१३ में विनाशकारी फेलिन के बाद से कोसी इलाके के खेती का आलम बदल सा गया। फेलिन के कारन पुरे कोसी इलाके में हजारों एकड़ की धान की फसल बर्बाद हो चुकी थी, लोगों को समझ में नहीं आ रहा था की आगे क्या होगा , कैसे आगे गाड़ी चलेगी। अनुभवी किसानों के खेती को जुआ बता कर एक दाँव लगाने की सलाह दी , और दावं खेल भी लिया। हर दावं बेकार धान में मिली नाकामी के बाद मक्के की खेती में जुट गया।मक्के की फसल खेत में देख कर किसान को दिलासा मिला था की धान न सही मक्के से राहत मिलेगी। मक्के की फसल के समय बेमौसम बारिश और बिचौलियों ने मुनाफे वाली खेती के अरमान पर पानी से फेर दिया।आलम यह था की मुनाफा तो दूर लागत भी नहीं निकल पाया। जैसे- ...
प्राचीन पाटलिपुत्र कथा
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पटना में पटना साहिब मार्ग पर स्थित कुम्ह्रार में आप प्राचीन पाटलिपुत्र की झलक देख सकते है . वह भारतीय पुरातत्व संग्रहालय के द्वारा प्रदर्शनी हाल का निर्माण करवाया गया है , इनता ही नहीं एक पूरा ग्राउंड ही बना है . पर बेहतर रख रखाव के करा कई चीज का क्षर हो रहा है , खुदाई में मिले सामग्री के बारे में पूरी जानकारी देने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है . अगर लोगों के जानकारी लेने है न तो वह खुद से पढ़ कर समझ सकते है . प्राचीन पाटलिपुत्र के बारे में प्राचीन साहित्य में पाटलिपुत्र के लिए पाटलिग्राम, पाटलिपुर,कुसुमपुर,पुष्पपुर एवं कुसुमध्वज इत्यादि नाम का उल्लेख किया गया है .छठी शताब्दी ई.पू. में यह एक छोटे से ग्राम के रूप में था ,जहाँ अपने निर्वाण से पूर्व भगवान बुद्ध ने एक निर्माणाधीन अवस्था में देखा था . इसका निर्माण मगध नरेश अजातशत्रु के आदेशानुसार वैशाली के लिच्छवी गणराज्य से मगध की सुरक्षा के लिए करवाया गया था . सामरिक दृष्टिकोण से इसकी भौगोलिक स्थिति से प्रवावित से प्रभावित होकर अजातशत्रु के पुत्र के उद्यन ने 5 वीं शताब्दी ई.पू. के मध्य मगध की राजधानी राजगृह से पाटलि...
बच्चे हमारे भविष्य नहीं हमारा वर्तमान है- कुशाल सिंह
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बच्चे हमारे भविष्य नहीं हमारा वर्तमान है- कुशाल सिंह बाल अधिकार और शिक्षकों की भूमिका कार्यशाला मैं उपस्थित अतिथि बच्चे हमारे भविष्य नहीं हमारा वर्तमान है A हमारी जनसंख्या में 40 प्रतिशत बच्चों की भागीदारी है A बाल अधिकार को समझने से पहले यह समझना होगा की बच्चे हमारे देश के नागरिक है A बाल अधिकार और शिक्षा एक दुसरे के पर्याय है और बिना बच्चों को शिक्षित किये हम उनको उनका अधिकार नहीं दिलवा सकते हैं A यह कहना है राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष सुश्री कुशाल सिंह का A पटना के होटल पाटलिपुत्र अशोका में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग , बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग और यूनिसेफ के द्वारा बाल अधिकार और शिक्षकों की भूमिका विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष सुश्री कुशाल सिंह ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा A राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष, कुशाल सिंह संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा की UNCRC बाल अधिकार की बायबल है A पहली बार सं...