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जयनगरा वाली लाल नुआ पहने पहली बार अपने ससुराल पहुंची थी जयनगरा वाली,वह भी महज 12 साल की उम्र में। गर्दन तक लंबा घूंघट ।रंग थोड़ा सांवला ।हां कद काठी में हमउम्र की लड़कियों में थोड़ी ज्यादा मजबूत। बदन भी गठीला था। दरवाजे पर पहुंचते ही साड़ी के नीचे से जोड़ी भर आंखे चोरी छिपे घर का मुआयना कर रही थी। घर क्या कहें दो छोटी-छोटी झोपडी ।बूढ़ी सास जिसे कम ही दिखाई देता था।ससुर कामत पर ही रहा करते थे। पति थोड़ा कड़क मिजाज वाला था। जिस कारण से मरर टोला में अलग पहचान थी। काम करने में भी माहिर कोई भी काम हो कभी ना नहीं करता था।ससुराल पहुंचने के बाद अवाक रह गई थी जयनगरा वाली। बाल सुलभ मन यह मानने को तैयार ही नहीं था कि अब उसे इसी जगह अपनी बांकी जिंदगी गुजार देनी है। बोलती कुछ नहीं थी। बस टुकुर टुकर निहारे जा रही थी। बगल खड़ी ननद ने जब चिकोटी काटा तब जाकर चेतना लौटी की वह ससुराल में खड़ी है और आसपास की महिलाएं खड़ी है। आस-पास की महिलाएं उसे घर में बिठा कर धीरे -धीरे वापस लौटने लगी थी। सास दो छत्ती के नीचे बैठी थी और ससुर वापस मालिक के कामत पर जाने की तैयारी में जुटे थे। जाने कब जयनगरा वाली के आंखों में नींद...